क्या जनता को अपना गुलाम समझते हैं नेता, समझिए इन नेताओं के चाल और चरित्र और स्वार्थ में राजनीति क्या हैं,अपने स्वार्थ में किस नेता का दिल कब किस पार्टी से कर ले प्यार कोई पता नहीं हैं

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समझिए राजनीति क्या हैं,अपने स्वार्थ में किस नेता का दिल कब किस पार्टी से कर ले प्यार कोई पता नहीं हैं

 

जिसकी कोई नीति न हो वहीं राजनीति हैं, इन दल बदल करने वाले नेताओं का न बने शिकार

अपने स्वार्थ के लिए कभी बसपा तो कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा में शामिल होते नेताओं की कहानी

संवाददाता अंबेडकरनगर। जब जब चुनाव आता हैं तो नेताओं का दिल अन्य दलो से चंद मिनट में मोहब्बत कब कर लेता हैं पता ही नहीं चलता हैं। अपने स्वार्थ के लिए कब कौन सा नेता किस पार्टी का दामन थाम ले कोई पता नहीं। इस लिए आप इन नेताओं का शिकार न बनिए। नेता शब्द ही ऐसा हैं जो किसी से नाता न रख सके वही नेता हैं। चुनावी दौरान में तो ऐसा लगेगा कि जनता ही इन नेताओं की मां बाप और भाई सब हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता हैं मतों की गिनती हो जाती हैं उसके बाद से नेता जी का नाता जनता से टूट जाता हैं और फिर किस दल से नेता जी का स्वार्थ सिद्ध हो जायेगा फिर उस दल से प्यार करने के लिए बेताब होकर अगले चुनाव में उस दल में शामिल होकर  चुनाव लडने का प्रयास करते हुए फिर जनता को अपना शिकार बनाने के फिराक में नेता जी लग जाते हैं। आप को कुछ ऐसे नेताओं का दिल कितनी जल्दी और कैसे बदल गया मैं कुछ नजीर पेश करता हू।

बसपा की सरकार में मंत्री बनकर खूब संपत्ति अर्जित करने वाले नेता लालजी वर्मा की बात करिए

वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव की बात करता हूं।लोक सभा का चुनाव लड़ रहें सपा प्रत्याशी लाल जी वर्मा ने बसपा की सरकार में रहकर दलितों के मतों से विजई होकर कैविनेट मंत्री बने और खूब संपत्ति बनाई । चंद मिनट में ऐसा क्या हो गया कि बहुजन समाज पार्टी की नीति और रीति से नफरत हो गई और लालजी वर्मा का दिल समाज वादी पार्टी से लग गया। अब नेता जी बसपा से मोह भंग कर सपा का दामन थाम लिए और विधान सभा का चुनाव सपा से लड़े और नौवीं बार विधान सभा कटेहरी से विधायक बने। जिले में ऐसे दर्जनों नेता हैं जिनका दिल हर चुनाव में किसी न किसी पार्टी से लग जाता हैं और चंद मिनट में ही नेता जी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किसी भी दल में समां जाते हैं।

दल बदल कर पुनः सांसद की कुर्सी हथियाने के प्रयास में नेता जी नम्बर दो

बसपा से विधायक बने और बसपा सपा गठबंधन से सांसद बने रितेश पाण्डे जी को तो आप लोग बेहतरीन तरीके से तो जानते ही होंगे बसपा से लोक सभा चुनाव 2024 में ऐसा क्या हो गया कौन सी नफरत हो गई कि सांसद जी को बसपा से लोक सभा चुनाव के एक महीने पहले ही बसपा की सदस्यता से स्तीफा देना पड़ा।और भाजपा की ऐसी कौन सी रणनीति से सांसद जी प्रभावित हो गए कि सांसद जी दिल भगवा मय हो गया । ऐसे में यह सावित होता हैं कि इन नेताओ को जनता की सेवा नही बल्कि अपनी राजनीति और कुर्सी को बरकरार कायम रखने के लिए अपने स्वार्थ में ही हर दल से कभी भी मोहब्बत करके किसी भी दल से चुनाव लड़ सकते हैं। इस लिए इन नेताओं को किसी भी पार्टी की कोई रीति और नीति से मतलब नहीं हैं। यदि मतलब हैं तो सिर्फ अपने स्वार्थ की। सबसे बड़ी बात हैं कि पिता राकेश पांडे अभी समाजवादी पार्टी से जलालपुर के विधायक हैं।

नेता नंबर तीन विधान सभा लड़ चुके अवधेश की भी बात हो जाए

आप समझिए राजनीति में नेता आपस में कैसे एक होते हैं। वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव में भाजपा नेता अवधेश द्विवेदी ने निषाद पार्टी और भाजपा के  गठबंधन से निषाद पार्टी से चुनाव लडे और बसपा से पूर्व विधायक के पुत्र प्रतीक पाण्डे चुनाव लड़े। अब चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी जनता के बीच में घूम घूम कर क्या भाषड दे रहें थे कि एक तरफ कलम और किताब पकड़ा कर शिक्षा देने वाले का बेटा चुनाव लड़ रहा हैं तो दूसरी तरफ बच्चों के हाथो में असलहा पकड़ाने वाले का बेटा चुनाव लड़ रहा हैं। अब समझना आप को हैं कि आप को किसे चुनना हैं।कलम और दवात वाले को चुनना हैं या बच्चों के हाथ असलहा पकड़ाने वाले को चुनना हैं। अब वहीं दुसरी तरफ पवन पाण्डे के भाई कक्कू पांडे ऊर्फ कृष्ण कुमार पाण्डे भी अवधेश द्विवेदी के विरोध में अपने भतीजे प्रतीक पाण्डे के पक्ष में बसपा कलर में रंग कर प्रचार कर रहें थे। इन नेताओं में ऐसी तना तनी थी कि जैसे लगता था जिले के सबसे बड़े दुश्मन पांडे परिवार और द्विवेदी हैं।

लोक सभा के चुनाव में खतम हो गई विधान सभा के चुनाव की दुश्मनी

लोक सभा चुनाव 2024 में जैसे ही भाजपा ने रितेश पाण्डे को मैदान में उतारा तत्काल प्रभाव से कांग्रेस पार्टी में रहें सांसद के चाचा कक्कू पांडे कांग्रेस से सदस्यता खत्म करते हुए। विना भाजपा में शामिल हुए ही अपने भतीजे रितेश पाण्डे का प्रचार प्रसार अपने टीम के साथ विधान सभा टांडा में शुरु कर दिए। एक तरफ विधान सभा के चुनाव में आमने सामने प्रतिद्वंदी रहें अवधेश द्विवेदी भाजपा लोक सभा संयोजक भी रितेश को जीत दिलाने के लिए प्रचार प्रसार कर रहे हैं। अब आप ही सोचिए इन नेताओं की चाल और चरित्र क्या हैं। इनकी दोस्ती और दुश्मनी कब होती हैं और कब खत्म हो जाती हैं। इस लिए इन नेताओं के चक्कर में पड़ कर इनके शिकार आप न बनिए। क्योंकि ये लोग होते ही हैं स्वार्थी।

1 thought on “क्या जनता को अपना गुलाम समझते हैं नेता, समझिए इन नेताओं के चाल और चरित्र और स्वार्थ में राजनीति क्या हैं,अपने स्वार्थ में किस नेता का दिल कब किस पार्टी से कर ले प्यार कोई पता नहीं हैं”

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