प्रेस वार्ता, लखनऊ।
लोकतंत्र में सच्ची जीत लोक से होती है, तंत्र से नहीं। जिस जीत के पीछे छल होता, वो दिखावटी जीत एक छलावा होती है, जो सबसे ज़्यादा उसीको छलती है, जिसने छल करके जीत का नाटक रचा है। ऐसी जीत जीतनेवालों को कमज़ोर करती है। नैतिक रूप से उनके ज़मीर को मार देती है। बिना ज़मीर के जीने वाले अंदर से खोखले होते हैं। ऐसे लोग सबके सामने अपने को ताक़तवर दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन अकेले में आइने में अपना मुँह देखने से भी डरते हैं।
भाजपा का हारने का डर तो उसी दिन साबित हो गया था, जिस दिन उसने PDA के अधिकारियों-कर्मचारियों को चुनाव से हटा दिया था। जिससे इनके अपने लोग वहाँ सेट किए जा सकें और धांधली की गवाही देनेवाला कोई न हो। हमने तो भाजपा की बदनीयत को समझकर तब ही विरोध किया था, लेकिन जब शासन-प्रशासन ही दुशासन बन जाए तो लोकतंत्र के चीर हरण को कौन रोक सकता है।
जिनकी उँगलियों पर निशान नहीं हैं, उनके भी वोट डाले गये हैं। चुनाव आयोग अपने दस्तावेज़ों में देखे कि जिनका नाम दर्ज है वो बूथ तक पहुँचे भी या नहीं। सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।
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